• Loign

Sign Up

Enter One Time Password (OTP) sent to your email or change mobile number

 

Send Enquiry

Forgot Password ?

दिव्यधेनुम धूपबत्ती (Divyadhenum Dhoopbatti)

(Code : DHPBT ) In Stock

50.00

हिंदू धर्म में बाँस (बंबू) को जलाना शुभ नहीं माना जाता है,

क्योंकि इसके पीछे धार्मिक, सांस्कृतिक और वैज्ञानिक कारण होते है :-

1. धार्मिक मान्यता: हिंदू धर्म में बाँस को पवित्र माना जाता है। बाँस का उपयोग मंदिरों में सजावट के लिए, विवाह और अन्य शुभ कार्यों में किया जाता है। बाँस को वंश वृद्धि और समृद्धि का प्रतीक माना जाता है, इसलिए इसे जलाना अपशगुन समझा जाता है।

2. पारंपरिक महत्व: बाँस का उपयोग पूजा और धार्मिक अनुष्ठानों में कई प्रकार से किया जाता है, लेकिन इसे जलाना अनुचित माना जाता है। इसे समृद्धि और जीवन के चक्र का प्रतीक माना जाता है, इसलिए इसे नष्ट करना या जलाना सही नहीं समझा जाता।

3. विज्ञान और स्वास्थ्य: बाँस जलाने पर उसमें से हानिकारक रसायन और विषाक्त गैसें निकलती हैं, जो स्वास्थ्य के लिए हानिकारक हो सकती हैं। बाँस की लकड़ी जलाने से निकलने वाला धुआं श्वसन तंत्र को नुकसान पहुँचा सकता है, जिससे फेफड़ों की समस्याएँ, जैसे अस्थमा, एलर्जी और अन्य बीमारियाँ हो सकती हैं।

4. वातावरण पर प्रभाव: बाँस का जलना पर्यावरण के लिए भी हानिकारक होता है। बाँस जलने पर कार्बन डाइऑक्साइड और अन्य हानिकारक गैसों का उत्सर्जन होता है, जिससे प्रदूषण बढ़ता है। पर्यावरण संरक्षण की दृष्टि से भी हमें बाँस के स्थान पर अन्य प्राकृतिक और पर्यावरण मित्र सामग्री का उपयोग करना चाहिए।

गौधन और हवन सामग्री से बने धूप Cones का महत्व:

गौधन (गाय का गोबर) और हवन सामग्री जैसे प्राकृतिक पदार्थों से बने धूप Cones पर्यावरण के अनुकूल होते हैं और धार्मिक दृष्टिकोण से भी शुद्ध माने जाते हैं। इनसे ना केवल पूजा की शुद्धता बनी रहती है, बल्कि इनके जलने से किसी प्रकार के हानिकारक रसायन या गैसें नहीं निकलतीं। इसलिए हमें बाँस की अगरबत्ती के बजाय गौधन और हवन सामग्री से बने धूप Cones का प्रयोग करना चाहिए, जो हमारे धर्म, स्वास्थ्य और पर्यावरण, तीनों के लिए लाभकारी हैं।